गुरुवार, 8 मई 2014
गुरुवार, 20 मार्च 2014
PRATHAM PUSHP
वक्रतुंड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभः।
निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्व कार्येषु सर्वदा।।
जीवन के अनेकों ख़ास पड़ावों को पार कर , उस छोर पर आ गयी हूँ ,जब शायद नया कुछ करने की चाह दिलों में नहीं रह जाती।
किन्तु मेरे प्रभु मेरे साथ , कुछ विचित्र ही करतब करते रहते हैं। उनकी कृपा से शांत जल में खिलती कुमुदनियों सम , ' विचार - पुष्प ' मेरे मन की गहराइयों से, अब भी प्रस्फुटित होते रहते हैं। मेरे निकट के लोग इन्हे कविता कह देते हैं। १९८४ से यह सिलसिला चला आ रहा है।
मैं जानती हूँ , अपनी योग्यता! और क्षमता ! जो कि इस लायक बिलकुल भी नहीं है। किन्तु फिर भी अंततः ' माँ वीणावादिनी की अनुकम्पा' और मित्रों के प्रोत्साहन ने मुझे प्रेरित कर ही लिया , इन्हे ब्लॉग रूप में प्रकाशित करने को। प्रभु आज्ञा व् मित्रों - सम्बन्धियों की शुभकामनाओं के फलस्वरूप अपनी प्रथम पोस्ट प्रेषित कर रही हूँ , जो मेरे ' इष्ट- देव ' को समर्पित है।
' मनमोहन श्याम '
मन भाई श्याम मोहे तोरी सुरतिया ।
रैन दिवस अंखियन में डोले, तोरी प्यारी - प्यारी मूरतिया।।
जब डालो तुम मुझ पर मोहन , नीले सागर से दो नैन।
डूबा जाए ह्रदय सांवरिया , इक पल भी मोहे आये ना चैन।।
काली - काली लट घुंघराली , कर दें मुझ पर ऐसा टोना।
बरबस खींचे ध्यान , डुलाएँ मन का कोना - कोना।।
पीत - वसन पे झलके पल - पल , मोर पंख की छाया ।
हो जाऊं मैं तोरी कान्हा , प्रेम - पुलक हो भीगे काया।।
तेरे कोमल अधरों पर जब , खेले श्याम मुरलिया ।
सात सुरों की गूंजे सरगम , भूलूं सुध होके बावरिया।।
सात सुरों की गूंजे सरगम , भूलूं सुध होके बावरिया।।
मुझे बनालो अपनी प्यारी , जैसी तुम्हारी राधा।
अब कान्हा ना बांटे अमिता , प्यार ये आधा - आधा।।
अमिता
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