रक्षाबंधन
रक्षाबंधन के पावन पर्व पर आप सबको हार्दिक बधाई !
बहुत समय बाद लेखनी चली तो बचपन की सुनहरी यादों
में खो गयी। एक कविता की रूप रेखा ज़हन में आई।
आज वो ही आपके लिए पोस्ट कर रही हूँ।
रक्षाबंधन में बचपन
सात स्वरों का मेल करा के, संगीत रचे वीणा के तार।
पावन बचपन याद दिलाता, रक्षाबन्धन का त्यौहार।।
पावन बचपन याद दिलाता, रक्षाबन्धन का त्यौहार।।
पहला 'सा' सीमा न थी जिसकी, वो था माँ पापा का प्यार।
जिसने चिंता रहित बनाया, देकर अमित असीम दुलार।।
दूजा 'रे' मा मा , रे मा मा रे' सुनाते थे दादा नाना कहानी।
और गा गा के लोरी, सुनाती थी, सुलाती थी दादी-नानी।।
'ग' से ग़म न था कोई, रहते थे होकर अबाध, निर्द्वन्द्व
इक्कड़ दुक्कड़, चोर सिपाही, मज़े से खेलते थे स्वछन्द।।
'म' से " मम्मी भूख लगी है " था हमारा तकिया कलाम।
मम्मी पूछतीं तो,"कुछ और कुछ और" कहती थी ज़ुबान।।
'प'से पापा,अर्थ व्यवस्था करते,रख चेहरे पर अजब ओज।
लाव-लश्कर ले खूब घुमाते, टूर पे हम थे, मनाते मौज।।
'ध' से धूप में साया करता, भाई तुम्हारा प्रेम-मय साथ।
नोंक-झोंक, मनोरंजन, मिठाई, राखी टीका और सौगात।।
'नि' से निकल पड़े जब, अपनी सुसराल आये हम।
तब भी, विदा कराने को भैया, दौड़ पड़े, आये तुम।।
सात सुरों और 'तीव्र म' से, बनता राग यमन- कल्याण।
यूं ही भाई का सम्बल, बहन की सांसों में भर देता प्राण।।
नहीं शब्द 'धन्यवाद' बहुत ! है छोटा यह पड़ जाता।
हैं अनमोल जगत में ऐसा, भाई - बहन का नाता।।
राखी बाँध भैया-भाभी को प्रतिवर्ष, प्रगाढ़ करूँ मैं प्रेम।
माथे पर मंगलमय टीका,रोली-अक्षत सजाऊँ यह नेम।।
जुग-जुग जियो तुम दोनों, सुखी स्वस्थ प्रसन्न रहो।
पाओ अनुपम यश- कीर्ति, देश में एक मिसाल बनो।।
पाओ अनुपम यश-कीर्ति, देश में एक मिसाल बनो।
पाओ अनुपम यश-कीर्ति, देश में एक मिसाल बनो।
अमिता 29.08.2015
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