शनिवार, 29 अगस्त 2015

RAKSHABANDHAN me BACHPAN

                   रक्षाबंधन 

रक्षाबंधन के पावन पर्व पर आप सबको हार्दिक बधाई !

बहुत समय बाद लेखनी चली तो बचपन की सुनहरी यादों 
में खो गयी। एक कविता की रूप रेखा ज़हन में आई। 
आज वो ही आपके लिए पोस्ट कर रही हूँ। 

               रक्षाबंधन में  बचपन   
 सात स्वरों का मेल करा के, संगीत रचे वीणा के तार।
  पावन बचपन याद दिलाता, रक्षाबन्धन का त्यौहार।।

 पहला 'सा' सीमा न थी जिसकी, वो था माँ पापा का प्यार।
 जिसने चिंता रहित बनाया, देकर अमित असीम दुलार।।

 दूजा 'रे' मा मा , रे मा मा रे' सुनाते थे दादा नाना कहानी।
और गा गा के लोरी, सुनाती थी, सुलाती थी दादी-नानी।।

'ग' से ग़म न था कोई, रहते थे होकर अबाध, निर्द्वन्द्व 
इक्कड़ दुक्कड़, चोर सिपाही, मज़े से खेलते थे स्वछन्द।।

'म' से " मम्मी भूख लगी है " था हमारा तकिया कलाम।
मम्मी पूछतीं तो,"कुछ और कुछ और" कहती थी ज़ुबान।।

'प'से पापा,अर्थ व्यवस्था करते,रख चेहरे पर अजब ओज।

 लाव-लश्कर ले खूब घुमाते, टूर पे हम थे, मनाते मौज।।

'ध' से धूप में साया करता, भाई तुम्हारा प्रेम-मय  साथ।

 नोंक-झोंक, मनोरंजन, मिठाई, राखी टीका और सौगात।।

'नि' से निकल पड़े जब, अपनी सुसराल आये हम। 

तब भी, विदा कराने को भैया, दौड़ पड़े, आये तुम।।

सात सुरों और 'तीव्र म' से, बनता राग यमन- कल्याण।

यूं ही भाई का सम्बल, बहन की सांसों में भर देता प्राण।।

 नहीं शब्द 'धन्यवाद' बहुत !  है  छोटा यह पड़ जाता।

 हैं अनमोल  जगत में ऐसा, भाई - बहन  का नाता।।

 राखी बाँध भैया-भाभी को प्रतिवर्ष, प्रगाढ़ करूँ मैं  प्रेम। 

 माथे पर मंगलमय टीका,रोली-अक्षत सजाऊँ यह नेम।।

 जुग-जुग जियो तुम दोनों, सुखी स्वस्थ प्रसन्न रहो।
 पाओ अनुपम यश- कीर्ति, देश में एक मिसाल बनो।।
 पाओ अनुपम यश-कीर्ति, देश में एक मिसाल  बनो।

                                          अमिता 29.08.2015 

लखनऊ के घर ( मायके) की यादे







































रमन भैया रसोई में 

party just  before leaving (Feb. 2015 )
party just before leaving (Feb. 2015)  
party just before leaving (Feb. 2015 )
                                                             बाबा, भाई, भाभी, पापा, मम्मी, बच्चों के साथ 
  
   ग़ुज़रा  हुआ वक्त (मम्मी, भाभी, बच्चों के साथ)
तरबूज़ के cut से ज़्यादा खुले मुह (नाना नातिनों  साथ )
पापा  मम्मी 
भाई लोग जीजाजी  साथ ( फरवरी २०१५)

family after dinner (February 2015 )

 पति, बेटियों, नाती के साथ (dec. 2014 )

 

शनिवार, 22 अगस्त 2015

सखी मैंने भी बेर चुने
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शुभ प्रभात!
आप सोचते होंगें कि मैं तो अदृश्य ही हो गयी। साथियों कुछ तो नून, तेल, लकड़ी की चिंता और कुछ आलस्यवश अनुपस्थित ही रही। आजकल मैं छोटी बेटी के पास लंदन आयी हुई हूँ। व्हाट्स ऐप पर एक सन्देश पढ़ा था।उसी पर विचार आते रहे और अंत में ये कविता निकली।
ऊषाजी कल आपने एक बहुत सुन्दर विचार भेजा था,
      'बेर चुनने का।'
उसी से कुछ विचार आये है। सुनिए,न,
   'सखी मैंने भी बेर चुने'
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सखी गयी थी बेर चुनन को,
कांटे रास्ते में आये ,
इच्छा थी तीव्र मिलन की,
वोे मुझे रोक ना पाये।
कुछ चुने बेर 'खट्टे मीठे',
चख कर मीठे हैं रक्खे,
बैठी मैँ राह तकूँ री सखी,
प्रभु जाने कब आ जाए।

गयी प्रात,जा रही दोपहरी,
संध्या होने को आयी,
आँखे हैं कि पथराने लगीं,
साँसों की डोर चरमराई।
सखी जाते दिखते राहों पर,
अनजान अचीन्हे राही,
प्रभु भुला दिया है मुझको,
मुझे तुम नहीँ दिए दिखाई।

मानूं  मैँ गंवार, कुरूपा,
कुल, जाति, गोत्र ना मानूं ,
कछु ज्ञान-ध्यान ना जानूं ,
पूजा की रीत ना जानू।
मेरा शबरी मन कबसे ,
है दरस की आस लगाए,
तुझे पाने की चाहत में ,
मैंने कितने जन्म गँवाए।

प्रभु कब तक आ जाओगे?
कहीं आस छूट ना जाए,
मेरे इस अधम जीवन की,
कहीं डोर टूट ना जाए।
क्यूँ आँख मिचौली मुझसे,
करते ना थकते स्वामी,
क्या इतने दिन हैं तरसाते,
अपनों को अन्तर्यामी?

मैं इसी सोच में थी बैठी,
मन में थी निराशा पैठी।
नयनों ने भी टेर लगाई,
प्रेम जल की झड़ी बरसाई।
तभी मन की दबी परतों से,
आवाज़ तुम्हारी आयी,
"मुझे अब तक ना पहचानी?
 तू तो मेरी ही परछाईं।"

"तूने परछाईं तो पकड़ ली,
पर मुझे बंद कर रखा है,
मद काम क्रोध लोभ मोह की,
परतों से जकड़ कर रखा है।
जब तक तू इनको पालेगी,
मैं कैसे बाहर आऊंगा ?
तेरे अंतर के इन व्यसनों के,
जाल में फंसा रह जाऊंगा।

पहले अपने पापी मन को,
शबरी मन सम तू स्वच्छ बना,
मद काम क्रोध लोभ मोह की,
भक्ति अग्नि में चिता जला।
सेवा, प्रेम और कर्तव्य कर,
नित निष्काम कर्म अपनाएगी,
मेरे नाम रूप की,अंतर में
तब अखंड ज्योति जल जायेगी।

फिरतो 'अमिता'अंदर बाहर,
हर ओर मुझी को देखेगी ,
पहनूंगा जो   पहनायेगी,
नाचूँगा  यदि  तू नचाएंगी।
खाऊंगा प्रेम से ये झूठे बेर,
यदि तू भी वही खिलायेगी,
'शबरी सम' तू रम जायेगी,
'मेरा नित्य एकत्व' पा जायेगी।।
'मेरा नित्य एकत्व' पा जायेगी।।
 अमिता,          
 ( लंदनसे )
20.07.2015