जीवन के सबसे बड़े यथार्थ से जब सामना होता है ,
तब दिल जैसे दहल उठता है। चारों ओर सब बेमानी लगने लगता है।
आज एक प्रिय की असमय , अकस्मात् मृत्यु के समाचार
ने हम दोनों को विचलित कर दिया है। मनुष्य नियति के हाथ का
खिलौना ही तो है। अपनी उस भांजी के ऊपर आयी विपत्ति के
स्मरण मात्र से दिल हाहाकार कर उठता है। इस छोटी उम्र में पति
का बीच मझधार में साथ छोड़ जाना क्या तूफ़ान ले आता है ,
समझ सकते हैं हम। कैसे सम्हालेगी वह अपने आप को और दो
कमसिन बच्चों के उत्तरदायित्व को? ईश्वर उसको, इस दुःख को
सहने की शक्ति दें तथा कुछ ऐसे नए रास्ते खोल दें जिन पर वह
धैर्य और साहस के साथ चल सके तथा अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभा सके।
जब जीवन की यह यथार्थता देखती हूँ तो एहसास होता है
कि, जो भी कार्य करने की हम सोचते हैं , उसे शीघ्रातिशीघ्र कर लेना
चाहिए। ज़िंदगी का क्या ठिकाना ? कबीरदासजी बहुत सोच समझ कर
कह गए हैं , "काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलय होयगी बहुरि करेगो कब ?"
आज लेखनी उठा कर सोचा था एक नयी कविता पोस्ट
करूंगी । किन्तु अब हिम्मत नहीं है। शीघ्र फिर मिलेंगें।
शुभ रात्रि !!